बैंकों को मिली चेतावनी: EMI डिफॉल्ट पर अब नहीं वसूला जा सकेगा अतिरिक्त ब्याज – RBI New Update

RBI New Update : भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) को एक महत्वपूर्ण निर्देश जारी किया है, जिससे कर्जदारों को राहत मिलेगी।

अब, यदि कोई ग्राहक ईएमआई का भुगतान समय पर नहीं करता है, तो बैंक उस पर दंडात्मक ब्याज (penal interest) नहीं लगा सकेंगे।

इसके बजाय, वे केवल एक उचित दंडात्मक शुल्क (penal charge) ही लगा सकते हैं। यह कदम कर्जदारों के लिए एक बड़ी राहत साबित होगा, क्योंकि इससे उनकी वित्तीय स्थिति पर अतिरिक्त दबाव कम होगा।

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क्या है दंडात्मक ब्याज और दंडात्मक शुल्क में अंतर?

दंडात्मक ब्याज वह अतिरिक्त ब्याज होता है जो बैंक मूल ब्याज दर के ऊपर लगाते हैं, जबकि दंडात्मक शुल्क एक निश्चित राशि होती है जो चूक के लिए लगाया जाता है।

आरबीआई ने स्पष्ट किया है कि दंडात्मक शुल्क को ब्याज दर में शामिल नहीं किया जा सकता और न ही उस पर कोई अतिरिक्त ब्याज लगाया जा सकता है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि कर्जदारों पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ न पड़े।

आरबीआई के नए निर्देशों की मुख्य बातें:

दंडात्मक शुल्क की पारदर्शिता : बैंक और एनबीएफसी को दंडात्मक शुल्क की राशि और उसके कारण को स्पष्ट रूप से ग्राहक को सूचित करना होगा। यह जानकारी लोन एग्रीमेंट, की फैक्ट स्टेटमेंट (KFS) और बैंक की वेबसाइट पर उपलब्ध करानी होगी।

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न्यायसंगत शुल्क निर्धारण : दंडात्मक शुल्क की राशि न्यायसंगत और लोन की शर्तों के उल्लंघन के अनुपात में होनी चाहिए। यह किसी विशेष लोन या उत्पाद श्रेणी में भेदभावपूर्ण नहीं होनी चाहिए।

नए और मौजूदा लोन पर लागू : यह निर्देश 1 जनवरी, 2024 से सभी नए लोन पर लागू होंगे। मौजूदा लोन पर यह निर्देश अगले रिव्यू या नवीनीकरण की तारीख से लागू होंगे, या 6 महीने के भीतर, जो भी पहले हो।

क्या यह निर्देश सभी प्रकार के लोन पर लागू होंगे?

नहीं, ये निर्देश सभी प्रकार के लोन पर लागू नहीं होंगे। क्रेडिट कार्ड, बाह्य वाणिज्यिक लोन (external commercial borrowings), व्यापारिक लोन (trade credits) और संरचित दायित्व (structured obligations) जैसे उत्पादों पर ये निर्देश लागू नहीं होंगे, क्योंकि ये उत्पाद विशिष्ट दिशा-निर्देशों के तहत आते हैं।

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आरबीआई का यह कदम कर्जदारों के हित में है और बैंकों द्वारा दंडात्मक ब्याज के अनुचित उपयोग पर रोक लगाएगा। इससे कर्जदारों को अपनी वित्तीय स्थिति को बेहतर बनाने का अवसर मिलेगा और वे अधिक पारदर्शिता के साथ अपने लोन की शर्तों को समझ सकेंगे।

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